hamburgerIcon

Orders

login

Profile

STORE
SkinHairFertilityBabyDiapersMore

Lowest price this festive season! Code: FIRST10

ADDED TO CART SUCCESSFULLY GO TO CART
  • Home arrow
  • Diabetes in Children in Hindi | बच्चे को भी हो सकती है शुगर, इग्नोर ना करें ये शुरूआती लक्षण arrow

In this Article

    Diabetes in Children in Hindi | बच्चे को भी हो सकती है शुगर, इग्नोर ना करें ये शुरूआती लक्षण

    Diabetes in Children in Hindi | बच्चे को भी हो सकती है शुगर, इग्नोर ना करें ये शुरूआती लक्षण

    Updated on 20 February 2024

    डायबिटीज़ या शुगर सिर्फ वयस्कों में होने वाली समस्या ही नहीं है, बल्कि यह बच्चों को भी तेज़ी से अपना निशाना बना रही है, जिसे हम पीडियाट्रिक हाइपरग्लिसेमिया या पीडियाट्रिक डायबिटीज़ के नाम से भी जानते हैं. अगर 10वें अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ एटलस 2021 (10th International Diabetes Federation Atlas 2021) की ओर से जारी आंकड़ों की बात करें तो सिर्फ भारत देश में ही टाइप-1 मधुमेह से जुड़े नए मामलों में 0-14 वर्ष की आयु के प्रति 1000 बच्चों में से 19 बच्चे मधुमेह की चपेट में आए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी आयु वर्ग के 1000 बच्चों में से 124 बच्चे इससे ग्रस्त हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ 0-19 वर्ष के आयु वर्ग में टाइप 1 डायबिटीज़ के 22,94,000 (लगभग 23 लाख) मामले हैं. निश्चित तौर पर ये आंकड़े ध्यान देने योग्य हैं. इस आर्टिकल के जरिये हम आपको बताएंगे कि बच्चों को कितनी उम्र से शुगर की समस्या हो सकती है, उसके प्रकार और उसके लक्षण (Diabetes in children and symptoms) क्या हैं और किस तरह से अपने बच्चों को डायबिटीज़ से बचाया जा सकता है.

    बच्चों को किस उम्र में हो सकती है शुगर (At what age Children can develop diabetes in Hindi)

    बच्चों में डायबिटीज़ जिसे हम पीडियाट्रिक डायबिटीज़ के नाम से भी जानते हैं, बेहद कम आयु से शुरू हो सकती है. ज़्यादातर मामलों में टीनएज में आते-आते बच्चों में इस समस्या की पहचान हो पाती है. अगर बात करें टाइप-1 डायबिटीज़ की तो उसकी शुरुआत बच्चों में कम उम्र से भी हो सकती है और किशोरावस्था में भी. वहीं देखा गया है कि टाइप-2 डायबिटीज़ की शुरुआत काफी बाद में होती है, लेकिन मौजूदा समय में मोटापे के कारण टाइप-2 डायबिटीज़ के मामले भी बच्चों में बढ़ रहे हैं.

    बच्चों में डायबिटीज़ के प्रकार ( Types of diabetes in children in Hindi)

    वयस्कों की ही तरह बच्चों में भी डायबिटीज़ दो प्रकार की देखी जा सकती है, टाइप-1 और टाइप-2. ये दोनों प्रकार मुख्य तौर पर पैंक्रियास (अग्न्याशय या पाचकग्रंथि) से निकलने वाले इंसुलिन और उसके रसाव की मात्रा पर निर्भर हैं. आइए इन दोनों प्रकार की डायबिटीज़ के बारे में और अधिक जानते हैं.

    टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस

    टाइप-1 डायबिटीज मेलिटस को जुवेनाइल डायबिटीज़ (Juvenile Diabetes) के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस प्रकार की शुगर से ज़्यादातर बच्चे ही ग्रस्त होते थे. डायबिटीज़ के इस प्रकार में समस्या पैंक्रियास से निकलने वाले इंसुलिन के वजह से होती है, क्योंकि इसमें पैंक्रियास इंसुलिन को बनाकर उसे शरीर में पहुंचा ही नहीं पाते. इस कारण से शुगर जो है, वो खून के ज़रिये कोशिकाओं तक पहुँच नहीं पाती और खून में शुगर का स्तर या मात्रा बहुत अधिक हो जाती है और बच्चों को टाइप-1 डायबिटीज़ होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. टाइप-1 की पहचान कम उम्र, आमतौर पर 5 वर्ष के आस-पास की जा सकती है.

    टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस

    टाइप-2 डायबिटीज़ मेलिटस की समस्या तब देखी जाती है, जब हमारे शरीर में पैंक्रियास इंसुलिन तो बनाता है, लेकिन उसकी मात्रा पर्याप्त नहीं होती. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि शरीर में खून के ज़रिये शुगर को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए जितनी मात्रा में इंसुलिन चाहिए, हमारे पैंक्रियास उतनी मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाते, जिसके कारण खून में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ने लगती है और लगातार खून में शुगर की बढ़ी मात्रा के कारण डायबिटीज़ का खतरा भी बढ़ जाता है.

    टाइप-2 डायबिटीज़ का ख़तरा किसे होता है, इस सवाल का बहुत बेसिक जवाब है कि अगर आपके घर में आपके करीबी रिश्तेदार जैसे कि भाई-बहन या माता-पिता को यह है तो बच्चों को भी यह अनुवांशिकता के कारण हो सकती है. इसके अलावा लाइफस्टाइल या हमारी जीवनशैली भी इसका प्रमुख कारण बनती है. बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज़ 14-15 वर्ष की आयु से देखी जा सकती है, जिसका एक कारण बच्चों में बढ़ता मोटापा भी है. इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान अगर माँ को डायबिटीज है तो उसके चलते यह समस्या होने वाले बच्चे को भी जन्म से ही हो सकती है.

    बच्चों में डायबिटीज़ के लक्षण (Symptoms of diabetes in children in Hindi)

    बच्चे को डायबिटीज़ है या नहीं, इसकी पहचान कैसे कर सकते हैं? इस सवाल का जवाब है, बच्चों में डायबिटीज़ से संबंधित लक्षणों को देख कर डायबिटीज़ की पहचान करना. क्योंकि यह एक समस्या है और जब भी यह किसी को अपनी चपेट में लेती है तो इसके कुछ सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं. चलिए जानते हैं बच्चों में डायबिटीज़ से जुड़े लक्षणों के बारे में.

    बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज़ से जुड़े हुए लक्षण

    • थकान (Tiredness) - बहुत कम काम करने के बाद या फिर बिना काम किए हुए भी बच्चे का बार-बार थक जाना. ऐसा इसलिए होता है कि बच्चे के शरीर में जितनी ऊर्जा होनी चाहिए, वह उन्हें मिल नहीं पाती, क्योंकि इंसुलिन की कमी के कारण ग्लूकोस कोशिकाओं तक पहुँच ही नहीं पाता.

    • अत्यधिक भूख लगना (Hunger) - छोटे बच्चे अकसर स्वाद अच्छा लगने पर पेट भरने से भी ज़्यादा भोजन करते हैं, लेकिन अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा ज़रूरत से ज़्यादा भोजन कर रहा है या बार-बार आपके पास भोजन मांगने के लिए आता है तो यह भी इस समस्या का एक संकेत हो सकता है.

    • अत्यधिक प्यास लगना (Increased Thirst) - खून में शुगर की मात्रा अधिक होने के कारण बच्चों को बहुत अधिक प्यास लगती है. यहां तक कि पानी पीने के बाद भी उनकी प्यास ख़त्म नहीं होती. यह संकेत हैं, बच्चों में शुगर की मात्रा अधिक होने का.

    • बार-बार पेशाब जाना (Frequent use of Toilet) - खून में ग्लूकोस की अधिक मात्रा के कारण बच्चे बार-बार बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं.

    • वज़न कम होना (Weightloss) - बच्चा ठीक से भोजन भी कर रहा है और बीमार नहीं है, फिर भी अगर बच्चे का वज़न अचानक से कम हो जाए तो यह चिंता का विषय है.

    • आँखों में धुंधलापन आना (Blurred vision) - डायबिटीज़ के कारण कई बच्चों की आँखें सूखने लगती हैं और उन्हें धुंधला नज़र आने लगता है.

    • चिड़चिड़ापन (Irritability) - अगर आप कुछ दिनों से बच्चे के बर्ताव में चिड़चिड़ापन महसूस कर रही हैं तो हो सकता है कि आपके बच्चे को भी डायबिटीज़ की समस्या हो.

    • सांस में फलों जैसी गंध आना (a Fruity smell while breathing) - कई बार देखा गया है कि जिन बच्चों के खून में ग्लूकोस की मात्रा अधिक होने लगाती है, उनके मुंह से सांस में फलों जैसी गंध आती है.

    बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज़ से जुड़े हुए लक्षण

    टाइप-1 की ही तरह टाइप-2 डायबिटीज़ में भी कई लक्षण समान होते हैं, जैसे कि थकान, वज़न का कम होना, बार-बार पेशाब जाना, अत्यधिक भूख और प्यास लगना, आँखों में धुंधलापन और उनका सूखने लगना. इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं जो इस प्रकार हैं-

    • चोट या संक्रमण का जल्दी ठीक न होना (Delay healing of wounds and infection) - आमतौर पर बच्चों को जो छोटी-मोती चोट लगती है, वह समय के साथ खुद-बी-खुद भी ठीक हो जाती है. लेकिन अगर बच्चे को डायबिटीज़ हो तो चोट खुद से ठीक नहीं होती, क्योंकि खून में मौजूद शुगर इसे जल्दी भरने नहीं देती. ऐसा ही संक्रमण के साथ भी होता है. संक्रमण जल्दी-जल्दी बच्चे को अपनी चपेट में लेते हैं और फिर दवाई के बावजूद जल्दी से ठीक नहीं होते.

    • प्राइवेट पार्ट के आस-पास खुजली (Itching around genitals) - आमतौर पर डायबिटीज़ के कारण बच्चों ख़ास तौर पर लड़कियों में यीस्ट इंफेक्शन की आशंका बहुत बढ़ जाती है और जिस कारण से उनके प्राइवेट पार्ट पर खुजली होती है.

    • त्वचा का काला होना (Dark patches on skin) - टाइप-2 डायबिटीज़ में अकसर देखा गया है कि बच्चों की गरदन या बगल की त्वचा का रंग गहरा हो कर काला होने लगता है. यह कुछ-कुछ वेलवेट जैसा दिखता है.

    बच्चों को डायबिटीज़ से कैसे बचाएँ (How to protect children from diabetes in Hindi)

    बचाव का पहला नियम है सावधानी. इसलिए कभी भी यहां बताए गए लक्षणों की अनदेखी न करें. बच्चे खेलते ज़्यादा हैं, इसलिए जल्दी थक जाते हैं, लेकिन अगर आपका बच्चा अकसर थकावट महसूस कर रहा हो या बिना किसी ख़ास कारण के उसका वज़न तेज़ी से गिर रहा हो तो आपको इसे गंभीरता से लेते हुए बच्चे के रक्त में शुगर की मात्रा की जांच करवानी चाहिए.

    हमारे देश में टाइप-1 डायबिटीज़ से बच्चे अधिक शिकार होते हैं, पर हाल के कुछ शोध बताते हैं कि टाइप-2 के मामलों में भी तेज़ी से वृद्धि हो रही है और शहरों में यह मामले ज़्यादा दिखाई दे रहे हैं. इसलिए आप अपने बच्चों के खान-पान, व्यायाम या शारीरिक गतिविधियों, मोटापे, संक्रमणों और चोट लगने से संबंधित बातों का ख़ास ख्याल रखें. खान-पान में अधिक मात्रा में चीनी का प्रयोग करना भी इस समस्या को बुलावा दे सकता है. साथ ही बच्चों का कम से कम शारीरिक गतिविधियों में भाग लेना, उन्हें थुलथुलेपन और मोटापे की ओर धकेल सकता है, जो आगे चल कर डायबिटीज़ का कारण बन सकता है.

    • बच्चे को संतुलित भोजन कराएं. उनके भोजन में ताज़े फल और सब्ज़ियां शामिल करें, कम वसा और हल्के प्रोटीन वाले भोजन, जैसे कि सोया मिल्क, मछली आदि कराएं और अंकुरित दाल खिलाएं.

    • बच्चे को प्रतिदिन 1 घंटा शारीरिक व्यायाम या किसी गतिविधि में भाग लेने को कहें. शारीरिक मेहनत करने से भी खून में शुगर की मात्रा को नियमित किया जा सकता है. सिर्फ सैर करने से भी शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है.

    • बेहतर मेटाबॉलिज़्म के लिए बच्चों को एक दिनचर्या में बांधे. अनियमित दिनचर्या भी टाइप-2 डायबिटीज़ का एक मुख्य कारण होती है, क्योंकि बेवक़्त भोजन करना या फिर भोजन करने के तुरंत बाद सोना भी हमारे मेटाबॉलिज़्म को खराब करता है.

    (conclusion)

    डायबिटीज़ की समस्या अकेले नहीं आती, बल्कि कई समस्याओं को अपने साथ ले कर आती है. दरअसल खून में अधिक शुगर की मात्रा होने का प्रभाव केवल खून पर ही नहीं बल्कि हमारे विभिन्न अंगों पर पड़ता है, खासकर कम उम्र के लोगों में. लेकिन अगर आप इसके 1 या 1 से अधिक लक्षणों को देख कर सही समय पर डॉक्टर से परामर्श करते हैं तो जल्दी ही इस समस्या का उपचार किया जा सकता है और बच्चे एक हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाते हुए डायबिटीज के साथ भी एक बेहतर ज़िन्दगी का आनंद उठा सकते हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि आप समय-समय पर बच्चे की जांच कराएं और किसी भी लक्षण या संकेत के दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें.

    Is this helpful?

    thumbs_upYes

    thumb_downNo

    Written by

    Ruchi Gupta

    A journalist, writer, & language expert, Ruchi is an experienced content writer with more than 19 years of experience & has been associated with renowned Print Media houses such as Hindustan Times, Business Standard, Amar Ujala & Dainik Jagran.

    Read More

    Get baby's diet chart, and growth tips

    Download Mylo today!
    Download Mylo App

    RECENTLY PUBLISHED ARTICLES

    our most recent articles

    foot top wavefoot down wave

    AWARDS AND RECOGNITION

    Awards

    Mylo wins Forbes D2C Disruptor award

    Awards

    Mylo wins The Economic Times Promising Brands 2022

    AS SEEN IN

    Mylo Logo

    Start Exploring

    wavewave
    About Us
    Mylo_logo

    At Mylo, we help young parents raise happy and healthy families with our innovative new-age solutions:

    • Mylo Care: Effective and science-backed personal care and wellness solutions for a joyful you.
    • Mylo Baby: Science-backed, gentle and effective personal care & hygiene range for your little one.
    • Mylo Community: Trusted and empathetic community of 10mn+ parents and experts.