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Updated on 22 March 2024
प्रणव बक्शी. कुछ दिनों पहले इंस्टाग्राम चलाते-चलाते इस नाम से रु-ब-रु होने का मौक़ा मिला. नाम क्या जीने की इंस्पीरेशन है, प्रणव बक्शी. प्रणव ने 19 साल की उम्र में मॉडलिंग शुरू की और इंडिया के पहले मेल मॉडल बने, जिन्होंने सबके सामने अपनी कमज़ोरी, (ऑटिज़्म) को अपनी ताकत के रूप में सराहा. विश्व स्वास्थ संगठन की बात करें तो हर 100 बच्चों में से 1 को ऑटिज़्म की समस्या है, लेकिन इसके बारे में आज भी चर्चा दबी आवाज़ में ही होती है.
ऑटिज़्म क्या है (meaning of autism in hindi) या ऑटिज्म का अर्थ क्या है? अब तक आपके ज़ेहन में भी ये सवाल उठने लगे होंगे. दरअसल जिसे हम साधारण भाषा में ऑटिज्म कहते हैं, वह एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Neurodevelopment disorder) है, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder or ASD) के नाम से भी जाना जाता है. ये कोई एक बीमारी नहीं है, बल्कि इसके तहत कई समस्याएं होती हैं, जिसके तहत सीखने, बातचीत करने और व्यवहार सम्बन्धी क्षमताओं पर प्रभाव आता है. कई बार तो आपको ऑटिस्टिक बच्चे को देख कर लगेगा ही नहीं कि उसको कोई समस्या भी है. लेकिन ASD के वजह से जहां, कुछ बच्चे किसी ख़ास विषय में बहुत तेज़ हो जाते हैं तो कुछ, खुद को दूसरों से अलग-थलग करने और समझने लगते हैं.
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की बात करें तो मुख्य तौर पर इस समस्या को 4 श्रेणियों में बांटा गया है. आइए जानते हैं ऑटिज्म के प्रकार (type of autism in hindi).
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (autistic disorder)- इसे क्लासिकल डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है. जब भी ऑटिज़्म की बात की जाती है तो ज़्यादातर मामले इस श्रेणी में ही आते हैं. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर से प्रभावित बच्चों को बोलने से संबंधित समस्याएं होती हैं और उनकी सामाजिक और संचार से जुड़ी हुई गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं.
एसपर्जर सिंड्रोम (Asperger Syndrome or AS)- ASD का अगला प्रकार है, एसपर्जर सिंड्रोम. ऑटिज़्म के बाकी प्रकारों की तरह इसमें भी बच्चे को सामाजिक और व्यावहारिक समस्याओं के साथ-साथ बोलने में भी दिक्कत होती है. लेकिन AS से प्रभावित बच्चे बहुत ही समझदार होते हैं. उनमें कोई ख़ास टैलेंट होता है और वे किसी ख़ास टॉपिक के मास्टर भी हो सकते हैं. लेकिन इन्हें इमोशंस को समझने में परेशानी होती है.
चाइल्डहुड डिसइंटिग्रेटिव डिसऑर्डर (Childhood integrative disorder or CDD)- ऑटिज़्म का यह प्रकार टॉडलर्स यानि 5 साल तक की उम्र के बच्चों में ही देखने को मिलता है. इससे प्रभावित बच्चों में 2 साल तक की उम्र में कोई भी लक्षण देखने को नहीं मिलता और फिर अचानक से उनकी सामाजिक, व्यवहारात्मक और बातचीत के कौशल में कमी देखने को मिलती है.
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Pervasive Development Disorder or PDD)- ऑटिज़्म के इस प्रकार में इस डिसऑर्डर से प्रभावित व्यक्ति या बच्चा क्लासिकल डिसऑर्डर में दिखाई देने वाले typical symptoms को नहीं दर्शाता और यही कारण है कि PDD और अटीपिकल डिसऑर्डर (atypical disorder) भी कहते हैं. यह 3 साल से कम उम्र के बच्चों को परेशान करता है. इसमें बच्चे खुद को अभिव्यक्त (express) नहीं कर पाते, उनकी सीखने की गति धीमी होती है और उनके शरीर के अंग हिलते हैं. परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर में ऑटिज़्म के लक्षण बहुत ही कम या न के बराबर दिखाई दे सकते हैं.
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर या ASD का कोई एक ज्ञात कारण नहीं है. सीधे शब्दों में कहें तो अभी तक ऑटिज़्म होने के कारण, शोध का विषय हैं. हां, जेनेटिक्स और आस-पास का वातावरण, इसमें अहम भूमिका निभाते हैं. आइए जानते हैं, क्या है ऑटिज्म के कारण.
जेनेटिक्स या अनुवांशिकी : ASD के अलग-अलग मामलों में जेनेटिक्स डिसऑर्डर या जेनेटिक्स म्युटेशन को कारण के तौर पर देखा जाता है. कुछ जेनेटिक्स म्युटेशन, बच्चा जन्म के साथ ही अपने माता-पिता से हासिल करता है, जिसका परिणाम बाद में दिखाई देता है, जबकि कुछ जेनेटिक डिसऑर्डर्स के परिणाम बच्चे में तुरंत दिखाई दे जाते हैं.
आस-पास का वातावरण : कई शोधकर्ताओं ने पाया है कि फसलों को बचाने के लिए उन पर किए जाने वाले कीटनाशकों के सेवन से लेकर टॉक्सिक हवा तक और प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जटिलताओं, जैसे विभिन्न कारक बच्चे के ऑटिस्टिक होने के कारण हो सकते हैं.
ऑटिज़्म की चपेट में बच्चे ही सबसे ज़्यादा आते हैं. लेकिन कम उम्र होने के कारण बच्चा ऑटिज़्म से प्रभावित है या नहीं, यह बता पाना काफी मुश्किल होता है. यही कारण है कि 2 साल तक के बच्चों की समय-समय पर डॉक्टर से जांच करानी चाहिए. कुछ लक्षण हैं, जो बच्चे को ऑटिज़्म की समस्या होने के संकेत देते हैं. चलिए जानते हैं शिशुओं में ऑटिज्म के लक्षण (symptoms of autism in hindi).
6 माह का बच्चा आराम से अपना नाम पहचानता है और आस-पास की विभिन्न आवाज़ों पर अपनी प्रतिक्रया भी देता है. लेकिन ASD के कारण बच्चों को प्रतिक्रया देने में समय लगता है और कुछ मामलों में वे बिलकुल भी प्रतिक्रया नहीं दे पाते.
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में बातचीत या संचार को लेकर कमी देखी जाती है. आम तौर पर 4 माह का बच्चा मुँह से भिन्न-भिन्न तरह की आवाज़ें निकालने लगता है. हो सकता है कि कुछ बच्चों में गतिविधि धीमे हो, लेकिन अगर आपको अपने बच्चे में बोलने से संबंधित गतिविधि में बहुत अधिक विलम्ब दिखाई दे रहा हो या ऐसा लग रहा हो कि बच्चा अभी शब्द भी नहीं बना पा रहा तो प्रोफेशनल हेल्प ज़रूर लें.
2 माह से अधिक आयु के होने पर बच्चे आँखों से संपर्क बनाने लगते हैं अगर 4 से 6 माह के होने पर भी बच्चा आँखों से संपर्क न बना पाए तो यह ऑटिज़्म का संकेत हो सकता है.
माना जाता है कि 9 माह के बच्चे इशारे से चीज़ों के बारे में बताने लगते हैं. लेकिन ऑटिज्म के कारण बच्चे इशारा नहीं कर पाते.
आमतौर पर बच्चे 2 साल की उम्र से बातचीत के दौरान भावों को समझने लगते हैं और उसी अनुसार अपनी बातचीत की टोन में भी फर्क लाते हैं. पर ASD के कारण बच्चे एक ही टोन में बोलते रहते हैं और अलग-अलग भावों को नहीं समझ पाते.
कुछ बच्चे छोटी-सी चीज़ चुभ जाने पर भी बहुत ज़ोर-ज़ोर से रोने या हल्ला करने लगते हैं. कई बार उनकी प्रतिक्रिया माता-पिता की समझ से भी बाहर होती है. ऑटिज्म के चलते बच्चों में बहुत अधिक सेंसरी सेंसिटिविटी बढ़ जाती है.
अक्सर आपने बच्चे को एक ही शब्द या वाक्य को दोहराते हुए देखा होगा, लेकिन अगर कोई बच्चा बार-बार और लगातार एक ही शब्द, वाक्य या बर्ताव को दोहराए तो यह ASD का भी संकेत हो सकता है.
माना जाता है छोटे बच्चों में ध्यान केंद्र करने की क्षमता कुछ ही समय के लिए होती है. यही कारण है कि बच्चे बहुत जल्दी एक खिलौने से दूसरे खिलौने या वस्तु की ओर आकर्षित हो जाते है. पर ऑटिज़्म के कारण कुछ बच्चे बहुत ही अधिक दिलचस्पी ले कर किसी ख़ास खिलौने या वस्तु के साथ ही खेलते रहते हैं.
आज मम्मी की जगह पापा खाना खिला रहे हैं तो बच्चा चिढ़चिढ़ा हो जाए या फिर हर रोज़ की तरह खाने में उसकी पसंदीदा चीज़ नहीं मिली तो वह परेशान हो जाए, यह ASD का संकेत हो सकता है.
पूरी रात बच्चा करवट ही बदल रहा है, चिढ़चिढ़ा हो रहा है या फिर रोता ही रहता है. छोटे बच्चे का सही से नींद न ले पाना, उसके ऑटिस्टिक होने का संकेत हो सकता है.
6 से भी कम शब्दों का प्रयोग करता है
ऐसी चीज़ें जो बच्चा पहले सीख चुका है, उन्हें अब नहीं दोहराता
चीज़ों के बारे में बताते समय उनकी तरफ इशारा नहीं करता
जानी-पहचानी चीज़ों को भी पहचानने में दिक्कत होती है, जैसे की उसका चम्मच और कप आदि
दूसरों की नकल नहीं करता
दूसरों के बुलाने या किसी ख़ास आवाज़ पर भी प्रतिक्रया नहीं देता
आँखों के माध्यम से संपर्क न बनाना
अपने खिलौने या चीज़ों को बार-बार पंक्तिबद्ध करना
दूसरों के साथ न खेलना
12 माह की आयु तक कुछ भी बोलना (babble) शुरू न करना और 16 माह तक कुछ शब्द नहीं बना पाना
दूसरों को गले लगाने या झप्पी देने से बचना
ऑटिस्टिक होने पर बच्चों को जितनी दवाइयों, माता-पिता के प्यार और सहारे की ज़रुरत होती है, उतना ही ध्यान उनकी डाइट पर भी दिया जाता है. माना गया है कि ऑटिज्म की स्थिति को गंभीर बनाने में ग्लूटेन (gluten) और केसिन (casein) बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. केसिन एक प्रकार का प्रोटीन है जो जानवरों के दूध और दूध से बने उत्पादों में मौजूद होता है. इसलिए ऑटिस्टिक बच्चों की डाइट में ग्लूटेन और केसिन को हटाना, एक बेहतर विकल्प है. यहां आपको एक चार्ट दिया जा रहा है, जिसके अनुसार आपको कुछ चीज़ों को बिलकुल बंद कर देना चाहिए और कुछ को आप निःसंकोच बच्चे को खिला सकते हैं.
क्या खाएं |
किससे बचें (अगर ग्लूटेन फ्री न हो तो) |
क्या न खाएं |
बीन्स, सीड्स, सूखे मेवे |
केक, कुकीज़ और चिप्स |
जौं |
ताज़ा अंडे |
टॉफी, चॉकलेट्स |
गेहूं |
ताज़ा मीट, मछली और मुर्गा |
अनाज |
बेसन |
कुट्टू का आटा |
पैकेज्ड फ़ूड, सी-फूड |
सूजी |
राजगिरा |
सॉस |
सेटेन फूड |
मोटा अनाज |
पास्ता |
खसखस |
ब्राउन राइस |
फ्रेंच फ्राइज़ |
जानवरों से मिलने वाला दूध और उससे बने उत्पाद |
ऑटिज्म है या नहीं, यह कैसे डाइग्नोस हो तो इसके लिए यह समझना ज़रूरी है कि ऑटिस्टिक बच्चों में मोटर स्किल्स या हाथ-पैरों का संतुलन बहुत खराब होता है. ऐसे बच्चे देर से बोलते हैं और एक ही बात को बार-बार बोलते हैं. इसके अलावा उन्हें सोचने-समझने में परेशानी होती है और उनकी दिलचस्पी भी बहुत ही कम चीज़ों में होती है. कुल मिला कर इनका सामाजिक और बातचीत का दायरा बहुत ही सीमित होता है.
अब जब आप ऑटिज़्म के संकेतों, उसके लक्षणों से वाकिफ़ हो गए हैं, तो यहां यह समझना और भी ज़रूरी है कि ऑटिज़्म के अलग-अलग लेवल या स्तर होते हैं, जिनके हिसाब से ऑटिस्टिक बच्चों को मदद देने की ज़रुरत होती है.
लेवल 1 : आप लेवल 1 को autism 1 के रूप में भी जान सकते हैं, जहां बच्चे को माता-पिता की बहुत कम मदद की ज़रुरत होती है. इसमें बच्चे को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
बच्चा खुद से दूसरों से बातचीत शुरू नहीं कर पाता या बातचीत करने का उसका मन नहीं करता
दूसरों के साथ बातचीत करने के दौरान वह सहज या स्वाभाविक प्रतिक्रया नहीं दे पाता
बच्चा अपनी बात तो स्पष्ट कहता है, लेकिन जब दो लोगों के बीच बातचीत हो तो उसे स्पष्ट बात करने में मुश्किल होती है
दोस्त बनाने में मुश्किल होती है
कुछ एकाध मामले में बच्चा अपनी चीज़ों को बदलने को तैयार नहीं होता
एक एक्टिविटी को रोक कर दूसरी करने में बच्चे को समस्या आती है
बच्चा खुद से अपने लिए प्लानिंग या ऑर्गनाइजिंग नहीं कर पाता
लेवल 2 : लेवल 2 में बच्चे को माता-पिता की अच्छी-खासी ज़रुरत होती है, जिसमें बच्चे को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
देखने भर से पता चलता है कि बच्चे को वर्बल और नॉनवर्बल कम्युनिकेशन में समस्या है
बच्चा बहुत ही कम मामलों में दूसरों के साथ बातचीत की शुरुआत करता है या उनकी बातों का जवाब देता है
माता-पिता या अन्य परिचितों की मदद के बावजूद बच्चे को सामाजिक होने में परेशानी आती है
बच्चा ज़िद्दी होता है या कहें अपनी चीज़ों को बदलना नहीं चाहता
बच्चे को अपना फोकस बदलने में बहुत मुश्किलें आती हैं
कई मामलों में बच्चा बार-बार एक ही चीज़ को दोहराता है या चीज़ों को करने से मना कर देता है
लेवल 3 : अगर बच्चा लेवल 3 की श्रेणी वाले ऑटिज्म में आता है तो देखा जाता है कि ऐसे बच्चे को माता-पिता या केयरगिवर की ज़रुरत बहुत ही ज़्यादा होती है. इसमें बच्चे को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
बच्चे को दूसरों से बातचीत करने और इशारों से समझाने में बहुत ज़्यादा मुश्किल आती है
बच्चा बहुत कम बाहर वालों से बातचीत कर पाता है
बोलते समय बच्चे के शब्द ठीक से सुनाई नहीं दे पाते
दूसरों को प्रतिक्रिया बहुत कम देते हैं और अपनी ज़रुरत को खुद से पूरा नहीं कर पाते
अपनी चीज़ों को बिलकुल भी बदलना नहीं चाहते
बेहद ज़िद्दी होते हैं
लगभग हर चीज़ या हर मामले में अपनी बात को दोहराते हैं या फिर पूरी तरह से नकार देते हैं
अगर आप ऑटिज्म या ऑटिस्टिक बच्चों के बारे में और जानना और समझना चाहते हैं तो आप भी Autism से जुड़े ऑनलाइन सर्विस जैसे 360 वेबसाइट या ऐप को विजिट कर सकते हैं.
जैसे कि पहले भी बात कर चुके हैं कि अभी तक ऑटिज़्म के कारण भी पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं, ऐसे में ऑटिज्म के इलाज के बारे में कह पाना मुश्किल है. हां, कुछ बच्चों में ASD को डिटेक्ट कर, उनका ऑटिज्म का इलाज हुआ है और आज ये बच्चे भी एक खूबसूरत ज़िन्दगी जी रहे हैं. आइए जानते हैं, इस समस्या के इलाज में क्या-क्या शामिल है:
बच्चों की बेहेवियरल थेरेपी, ताकि वे अपनी समस्याओं का समाधान निकालने का कौशल सीख सकें
स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपी, ताकि वे दूसरों से भी बातचीत करने का हुनर हासिल कर सकें
इस मानसिक समस्या के साथ कुछ परेशानियां जैसे कि गुस्सा, चिढ़चिढ़ापन, बेचैनी, ध्यान आकर्षित करने और डिप्रेशन आदि भी होता है, जिसके लिए बच्चे को दवाओं की ज़रुरत होती है.
नॉर्मल ज़िन्दगी जीना सीखाने के लिए बच्चे को एजुकेशनल और डेवलपमेंटल थेरेपी दी जाती है
बच्चो को उनकी खूबियों से रु-ब-रु कराने के लिए साइकोथेरेपी दी जाती है
बच्चों के भोजन में बदलाव और साथ में स्पलीमेंट्स का सेवन करने के बारे में बताया जाता है
ऑटिज़्म का कोई एक कारण नहीं होता, लेकिन जल्द से जल्द इसकी पहचान कर आप इस समस्या को गंभीर होने से पहले ही संभाल सकते हैं. इसके अलावा कुछ बातों को ध्यान में रख कर अपने बच्चों को इस समस्या से बचाया जा सकता है.
प्रेग्नेंसी में माँ को डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों का ही सेवन करना चाहिए, खासतौर पर जो बच्चे के दिमाग को तंदरुस्त बनाने में मददगार होती हैं.
प्रेग्नेंसी में ही बच्चे के दिमागी विकास का पता लगाने के लिए कुछ टेस्ट जैसे कि ट्रिपल मरकर टेस्ट और न्यूक्ल ट्रांस्लूसेंसी टेस्ट कराया जाता है.
प्रेग्नेंसी के दौरान माँ को ओमेगा-3, आयरन और फोलिक एसिड युक्त भोजन करना चाहिए.
प्रेग्नेंसी के समय में माँ को नशीले और टॉक्सिक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
पर्यावरण में मौजूद टॉक्सिन्स, कीटनाशकों आदि से दूर रहना चाहिए.
घर और कमरे हवादार होने चाहिए और घर में भी टॉक्सिन्स का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
हेल्दी रूटीन को अपनाएं, जिसमें संतुलित भोजन और व्यायाम शामिल होना चाहिए. साथ ही खुशनुमा माहौल बनाए रखें.
समय-समय पर बच्चे की मेडिकल जांच कराएं.
Mylo की एक्सपर्ट टीम का कहना है कि ऑटिज्म सिर्फ एक मानसिक बीमारी नहीं है, बल्कि यह डिसऑर्डर कई मानसिक समस्याओं को अपने साथ लेकर आता है. इसमें दो अलग-अलग ऑटिस्टिक बच्चों के लक्षण और उसकी गंभीरता अलग-अलग हो सकती है. लेकिन 2 साल तक की उम्र में इस समस्या को पहचान कर बच्चे को ज़रूरी मेडिकल सहायता और अपनापन दे कर ASD के लक्षणों को धीरे-धीरे ख़त्म किया जा सकता है. सही समय पर पहचान और उसका इलाज किसी भी ऑटिस्टिक बच्चे की ज़िन्दगी को दोबारा से नॉर्मल बना सकता है. उम्मीद है कि इस आर्टिकल के माध्यम से ऑटिज़्म की बारे में आपको ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी मिल गई होगी.
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Written by
Ruchi Gupta
A journalist, writer, & language expert, Ruchi is an experienced content writer with more than 19 years of experience & has been associated with renowned Print Media houses such as Hindustan Times, Business Standard, Amar Ujala & Dainik Jagran.
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