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Weight Gain
11 October 2023 को अपडेट किया गया
अक्सर पेरेंट्स को अपने बच्चे के वज़न की चिंता होती है. अगर आप भी उन्हीं पेरेंट्स में से एक हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं. वज़न का बेबी की सेहत से विशेष कनेक्शन होता है. वज़न कम होने पर बेबी को कई तरह के हेल्थ संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. चलिए इस आर्टिकल के ज़रिये आपको बताते हैं कि आपके बेबी के लिए वज़न का बढ़ना क्यों ज़रूरी है और कैसे आप अपने बच्चे का वज़न बढ़ा सकते हैं! लेकिन उससे पहले जानिए कि शुरुआती 1 साल में बच्चे का वज़न कितना होना चाहिए और इस समय उसकी ग्रोथ किस प्रकार से होती है!
0 से 3 माह तक बेबी की ग्रोथ पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता है. इस उम्र में बेबी अपने न्यूट्रिशन और भूख के लिए पूरी तरह से स्तनपान पर निर्भर रहता है. इस समय बेबी का वज़न और लंबाई दोनों ही तेज़ी से बढ़ती है. लेकिन ध्यान रखें हर बेबी अलग होता है. इसलिए उसकी ग्रोथ में थोड़ा अंतर हो सकता है. कुछ बेबिज की ग्रोथ थोड़ी जल्दी हो जाती है, जबकि कुछ बेबिज की ग्रोथ में समय लगता है. ऐसा होना बिल्कुल नॉर्मल है. जन्म से लेकर 3 महीने तक हर महीने बच्चा 1/2 से 1 इंच (लगभग 1.5 से 2.5 सेंटीमीटर) बढ़ सकता है और उसका वज़न हर सप्ताह 5 से 7 औंस (लगभग 140 से 200 ग्राम) हो सकता है. हालाँकि, अगर आपको लगता है कि आपके बेबी का वज़न कम है, तो ऐसी स्थिति में आप इन बातों पर ग़ौर करें;
बेबी को एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाएँ. माँ का दूध बच्चे के लिए न्यूट्रिशन का सोर्स होता है.
अपने बेबी को बार -बार फ़ीडिंग करवाएँ. न्यूबोर्न बेबी की डिमांड के अनुसार ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाना ज़रूरी होता है. अगर आपका बेबी हर दो घंटे में आपके ब्रेस्ट को छूता है या रोता है, तो आप उसे उसी समय ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाएँ.
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अगर बेबी सीधे ब्रेस्टफ़ीडिंग नहीं कर पा रहा है या उसे कम दूध मिल रहा है, तो ऐसी स्थिति में ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. ब्रेस्ट पंप की मदद से आप दूध को स्टोर कर सकते हैं.
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अगर आपको लगता है कि बेबी का वज़न कम है या बढ़ नहीं रहा है, तो ऐसी स्थिति में आप अपने डॉक्टर की सलाह भी ले सकते हैं और उनसे बच्चे के वज़न के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
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3 से 7 माह के बीच बेबी की ग्रोथ और वज़न में बदलाव आता है. 3 महीने का होने के बाद आपके बच्चे का वज़न धीमी गति से बढ़ने लगता है. इस समय बेबी का वज़न हर हफ़्ते लगभग 4 औंस (110 ग्राम) बढ़ सकता है. हालाँकि, 5 महीने के बाद बच्चे का वज़न दोगुनी गति से बढ़ने से लगता है.
5 से 6 महीने के बीच आप बेबी को सॉलिड फूड देने की शुरुआत कर सकते हैं. आप धीरे-धीरे बेबी को सॉलिड फूड देना शुरू कर सकते हैं. बेबी के न्यूट्रिशन को ध्यान में रखते हुए इस समय आपको बहुत ध्यान से उसका डाइट प्लान बनाना चाहिए. इस समय आपको इन बातों पर ग़ौर करना चाहिए;
ब्रेस्टफ़ीडिंग के साथ इस समय आपको बेबी को सॉलिड फूड देने की धीरे-धीरे शुरुआत करना चाहिए. आप सिंगल ग्रेन सेरेलक, मसले हुए फ्रूट या वेजिटेबल से शुरुआत कर सकते हैं.
बेबी को खाने के लिए अलग-अलग चीज़ें दें. ऐसा करने से बेबी को हर तरह का न्यूट्रिशन मिलता रहेगा.
बच्चे को एक साथ खिलाने की बजाय थोड़ी-थोड़ी देर में खिलाएँ. आप थोड़ी- थोड़ी देर में स्तनपान भी करवा सकते हैं.
बच्चे के वज़न को मॉनिटर करते रहें और डॉक्टर से रेगुलर चेक-अप करवाते रहें.
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7 से 12 महीने के बेबी की ग्रोथ और वज़न में काफ़ी बदलाव आते हैं. इस समय बेबी को संतुलित डाइट देना ज़रूरी होता है. साथ ही, उसे फिजिकल एक्टिविटी को प्रोत्साहित करना चाहिए. आपके शिशु का वज़न अब हर हफ़्ते लगभग 3 से 5 औंस (85 से 140 ग्राम) बढ़ता है. बता दें कि आमतौर पर बच्चे के पहले जन्मदिन तक उसका वज़न उसके जन्म से तीन गुना अधिक होता है. इस समय आपको इन बातों पर ग़ौर करना चाहिए;
इस समय आपको अपने बेबी को सॉलिड फूड्स में वेराइटी देना चाहिए. आपको उसकी डाइट में विटामिन, प्रोटीन और मिनरल आदि को शामिल करना चाहिए. इसके साथ ही आपको बेबी की डाइट में दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स को भी शामिल करना चाहिए. बेबी को स्नैक्स में फ्रूट्स, योगर्ट और चीज़ दें. बच्चे को बिल्कुल भी जंक फूड या शुगरी चीज़ें न दें.
बेबी के रेगुलर खाने और स्नैक्स का एक शेड्यूल बनाएँ. ऐसा करने से बेबी के मेटाबॉलिज्म में सुधार होगा.
बेबी को खेलने और घूमने का मौक़ा दें. ऐसा करने से उसकी फिजिकल एक्टिविटी बढ़ेगी. इससे न सिर्फ़ बच्चे का वज़न बढ़ेगा; बल्कि उसकी ओवरऑल हेल्थ में भी सुधार होगा.
रेगुलर चेकअप और डॉक्टर की सलाह से बेबी की ग्रोथ को मॉनिटर करते रहें. बेबी में कुछ अलग लक्षण महसूस होने पर डॉक्टर से परामर्श करें.
अगर आपको अपने बच्चे के वज़न की चिंता हो रही है (Shishu ka wajan kaise badhaye), तो आप इन टिप्स को फॉलो कर सकते हैं;
अगर आप पहली बार माँ बनी हैं, तो आपको बेबी को दूध पिलाने में समस्या आ सकती है. लेकिन ध्यान रखें बच्चे को स्तनपान करवाना भी एक कला है और इसके लिए आपको प्रैक्टिस की ज़रूरत होगी. ऐसा होना बिल्कुल नॉर्मल है. बच्चे को सही पोजीशन में बैठकर स्तनपान करवाएँ. नोटिस करें कि बच्चा ठीक तरीक़े से लैचिंग कर रहा है या नहीं.
अगर आपको लगता है कि आपको ठीक तरीक़े से या पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं आ रहा है, तो चिंता न करें. आपकी तरह कई ऐसी न्यू मॉम्स होती हैं, जिन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ता है. मिल्क सप्लाई को बढ़ाने के लिए आप अपने बच्चे को थोड़ी-थोड़ी देर में दूध पिलाते रहें. साथ ही, न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट फॉलो करें.
अगर आप बेबी को फॉर्मूला मिल्क देते हैं, तो ध्यान रखें कि बेबी उसके प्रति अधिक संवेदनशील न हों. अगर फॉर्मूला मिल्क से बेबी को एलर्जी महसूस होती है, तो आप दूसरा फॉर्मूला मिल्क इस्तेमाल करें. अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार बेबी को फॉर्मूला मिल्क दें.
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बेबी की डाइट में हेल्दी फैट्स, कैलोरी, विटामिन और प्रोटीन से भरपूर चीज़ों को शामिल करें. अपने बच्चे को सेब और संतरे के बजाय केले, नाशपाती और एवोकाडो दें. इन फलों में कैलोरी की मात्रा अधिक होती है.
कुछ रिसर्च की मानें तो मसाज से बेबी को बहुत फ़ायदा होता है. मसाज से न सिर्फ़ बच्चे की ग्रोथ बेहतर तरीक़े से होती है; बल्कि उसका वज़न भी हेल्दी तरीक़े से बढ़ता है.
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अगर सारे उपाय अपनाने के बाद भी बच्चे के वज़न में कोई ख़ास अंतर नहीं आ रहा है, तो एक बार पीडियाट्रिशियन से बात करें. वह बेबी की हेल्थ के आधार पर आपको सही सलाह देंगे.
हर बच्चे की ग्रोथ जर्नी अलग होती है. इसलिए अपने बच्चे के वज़न और ग्रोथ की तुलना दूसरे बच्चों से न करें. हालाँकि, अगर आपको अपने बच्चे के वज़न में कोई ख़ास अंतर नज़र नहीं आता है, बच्चा स्तनपान या कुछ भी खाने के बाद उल्टी कर देता है या उसे बार-बार दस्त या बुखार की समस्या आती है, तो ऐसी स्थिति में आपको डॉक्टर से बात करने में बिल्कुल भी देरी नहीं करना चाहिए.
1. Worobey J, Lopez MI, Hoffman DJ. (2009). Maternal behavior and infant weight gain in the first year.
2. Lestari KP, Nurbadlina FR, Wagiyo W, Jauhar M. (2021). The effectiveness of baby massage in increasing infant's body weight.
3. Thomson JL, Goodman MH, Tussing-Humphreys LM, Landry AS. (2018). Infant growth outcomes from birth to 12 months of age: findings from the Delta Healthy Sprouts randomized comparative impact trial.
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Written by
Jyoti Prajapati
Jyoti is a Hindi Content Writer who knows how to grip the audience with her compelling words. With an experience of more
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